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वो सूरतें जो बड़ी शोख़ हैं सजीली हैं | शाही शायरी
wo suraten jo baDi shoKH hain sajili hain

ग़ज़ल

वो सूरतें जो बड़ी शोख़ हैं सजीली हैं

वाली आसी

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वो सूरतें जो बड़ी शोख़ हैं सजीली हैं
उन्हें क़रीब से देखा तो वो भी पीली हैं

मैं एक झील के तट पर उदास बैठा हुआ
ये सोचता हूँ वो आँखें भी कितनी नीली हैं

मिरी मोहब्बतें मेरी वफ़ाएँ मेरा ख़ुलूस
तिरी कलाई में ये चूड़ियाँ भी ढीली हैं

मैं दलदलों के इलाक़े में आ गया शायद
कि धूप तेज़ है लेकिन हवाएँ सीली हैं

न जाने कौन सा ये शहर है कि इस के ब'अद
हमारे गिर्द जो राहें हैं सब कटीली हैं