वो सो रहा है ख़ुदा दूर आसमानों में
फ़रिश्ते लोरियाँ गाते हैं उस के कानों में
ज़मीं पे गिरते हैं कट कट के सर फ़रिश्तों के
अजीब ज़लज़ला आया है आसमानों में
सड़क पे आ गए सब लोग बिलबिलाते हुए
न जाने कौन मकीं आ गए मकानों में
फटे पुराने बदन से किसे ख़रीद सकूँ
सजे हैं काँच के पैकर बड़ी दुकानों में
वहीं पिघल के न रह जाए मेरा संग-ए-सदा
कि ज़र्द ज़हर का पर्दा है इस के कानों में
निकल के ज़र्द चराग़ों से ज़हर का आसेब
पहुँच गया है मिरे घर मिरी दुकानों में
ग़ज़ल
वो सो रहा है ख़ुदा दूर आसमानों में
अब्दुर्रहीम नश्तर