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वो सर से पाँव तक है ग़ज़ब से भरा हुआ | शाही शायरी
wo sar se panw tak hai ghazab se bhara hua

ग़ज़ल

वो सर से पाँव तक है ग़ज़ब से भरा हुआ

आफ़ताब हुसैन

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वो सर से पाँव तक है ग़ज़ब से भरा हुआ
मैं भी हूँ आज जोश-ए-तलब से भरा हुआ

शोरिश मिरे दिमाग़ में भी कोई कम नहीं
ये शहर भी है शोर-ओ-शग़ब से भरा हुआ

हाँ ऐ हवा-ए-हिज्र हमें कुछ ख़बर नहीं
ये शीशा-ए-नशात है जब से भरा हुआ

मिलता है आदमी ही मुझे हर मक़ाम पर
और मैं हूँ आदमी की तलब से भरा हुआ

टकराओ जा के सुब्ह के साग़र से 'आफ़्ताब'
दिल का ये जाम वादा-ए-शब से भरा हुआ