वो रौशनी कि ब-क़ैद-ए-सहर नहीं ऐ दोस्त
तिरा जमाल है मेरी नज़र नहीं ऐ दोस्त
तिरे बग़ैर वो शाम-ओ-सहर नहीं ऐ दोस्त
कोई चराग़ सर-ए-रहगुज़र नहीं ऐ दोस्त
बहाना ढूँढ लिया तुझ से बात करने का
कुछ और मक़्सद-ए-अर्ज़-ए-हुनर नहीं ऐ दोस्त
शब-ए-फ़िराक़ ये महवियतों का आलम है
किसी की हाए किसी को ख़बर नहीं ऐ दोस्त
मह ओ नुजूम भी गर्म-ए-सफ़र तो हैं लेकिन
कोई भी उन में मिरा हम-सफ़र नहीं ऐ दोस्त
कभी उधर से जो गुज़रे तो सरसरी गुज़रे
सवाद-ए-तूर तिरी रहगुज़र नहीं ऐ दोस्त
ग़ज़ल
वो रौशनी कि ब-क़ैद-ए-सहर नहीं ऐ दोस्त
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ