वो मिरे दिल की रौशनी वो मिरे दाग़ ले गई
ऐसी चली हवा-ए-शाम सारे चराग़ ले गई
शाख़ ओ गुल ओ समर की बात कौन करे कि एक रात
बाद-ए-शिमाल आई थी बाग़ का बाग़ ले गई
वक़्त की मौज तुंद-रौ आई थी सू-ए-मय-कदा
मेरी शराब फेंक कर मेरे अयाग़ ले गई
दिल का हिसाब क्या करें दिल तो उसी का माल था
निकहत-ए-ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं अब के दिमाग़ ले गई
बाग़ था उस में हौज़ था हौज़ था उस में फूल था
ग़ैर की बे-बसीरती मुझ से सुराग़ ले गई
ग़ज़ल
वो मिरे दिल की रौशनी वो मिरे दाग़ ले गई
सलीम अहमद