वो मेरे क़ल्ब-ओ-रूह को शादाब कर गया
फिर इस तरह गया मुझे बेताब कर गया
काजल भी नींद का मिरी आँखों से ले उड़ा
ख़्वाबों में आ के वो मुझे बे-ख़्वाब कर गया
उस ने तो इज़्तिराब के मा'नी सुझा दिए
ऐसी निगाह की मुझे बेताब कर गया
जिंस-ए-गिराँ समझ के नहीं देखता कोई
मुझ को वो एक जौहर-ए-नायाब कर गया
जौफ़-ए-सदफ़ समझ के पड़ी अब्र की नज़र
थी सत्ह-ए-आब पर वो तह-ए-आब कर गया
बाक़ी रहे न बाम-ओ-दरीचे न ही फ़सील
क्या हाल मेरे दिल का ये सैलाब कर गया
साहिर था देवता था कोई बुत-तराश था
पत्थर थी एक 'बानो' वो सीमाब कर गया

ग़ज़ल
वो मेरे क़ल्ब-ओ-रूह को शादाब कर गया
बानो बी