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वो लोग भी हैं जो मौजों से डर गए होंगे | शाही शायरी
wo log bhi hain jo maujon se Dar gae honge

ग़ज़ल

वो लोग भी हैं जो मौजों से डर गए होंगे

सलीम अहमद

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वो लोग भी हैं जो मौजों से डर गए होंगे
मगर जो डूब गए पार उतर गए होंगे

लगी ये फ़िक्र नई दिल को आ के मंज़िल पर
कहाँ भटक के मिरे हम-सफ़र गए होंगे

पलट के आँख में वो मौज-ए-ख़ूँ नहीं आई
चढ़े हुए थे जो दरिया उतर गए होंगे

चले तो एक ही रस्ते पे हम मगर न मिले
मिले भी होंगे तो बच कर गुज़र गए होंगे

जो मौत से न डरे वो भी तेरे साथ नहीं
कि ज़िंदगी के सवालों से डर गए होंगे

जहाँ ये बाग़ है पहले यहाँ बयाबाँ था
ज़रूर इधर से तिरे ख़ुश-नज़र गए होंगे

जो शाह-राहों पे देखे हैं लोग पत्थर के
तलब में जीने की ये सू-ए-ज़र गए होंगे

हमारी किश्त-ए-दिल-ओ-जाँ से उस की मिज़्गाँ तक
ये सिलसिले तिरे ऐ चश्म-ए-तर गए होंगे

जो मिल गया है तो अब मुझे से हाल-ए-हिज्र न पूछ
किसी तरह से वो दिन भी गुज़र गए होंगे

'सलीम' ज़ीस्त तो मुश्किल थी बे-दयारों की
वतन से दूर कहीं जा के मर गए होंगे