वो ख़ूँ बहा कि शहर का सदक़ा उतर गया
अब मुतमइन हैं लोग कि दरिया उतर गया
फिर जम'अ कर रहा हूँ पर-ए-काह-ए-सरगुज़िश्त
हैरान हूँ कि ज़ेहन से क्या क्या उतर गया
आसेब रास्ते में शजर रोज़-ओ-शब के थे
जंगल के पार मैं तन-ए-तन्हा उतर गया
ग़र्क़ाब हौके सीखी है गौहर-शनावरी
पत्थर न था कि पानी में गहरा उतर गया
मुझ को तो बे-मज़ा लगा पानी का ज़ाइक़ा
वो कौन था जो दश्त में प्यासा उतर गया
हाँ हार मान ली तिरी यादों के रू-ब-रू
इस बार कुफ़्र-ए-संग में तेशा उतर गया
ले आईं किस फ़राज़ पे लफ़्ज़ों की सीढ़ियाँ
काग़ज़ पे हू-ब-हू वो सरापा उतर गया
आहट इलाज है दिल-ए-वहशत-पसंद का
रखा नमक ज़बाँ पे कि नश्शा उतर गया
'शाहिद' तलाश-ए-रिज़्क़ है ताइर की जुस्तुजू
पानी मुझे जहाँ नज़र आया उतर गया

ग़ज़ल
वो ख़ूँ बहा कि शहर का सदक़ा उतर गया
सलीम शाहिद