वो जो रूठें यूँ मनाना चाहिए
ज़िंदगी से रूठ जाना चाहिए
हिम्मत-ए-क़ातिल बढ़ाना चाहिए
ज़ेर-ए-ख़ंजर मुस्कुराना चाहिए
ज़िंदगी है नाम जोहद ओ जंग का
मौत क्या है भूल जाना चाहिए
है इन्हीं धोकों से दिल की ज़िंदगी
जो हसीं धोका हो खाना चाहिए
लज़्ज़तें हैं दुश्मन-ए-औज-ए-कमाल
कुल्फ़तों से जी लगाना चाहिए
उन से मिलने को तो क्या कहिए 'जिगर'
ख़ुद से मिलने को ज़माना चाहिए
ग़ज़ल
वो जो रूठें यूँ मनाना चाहिए
जिगर मुरादाबादी