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वो हँसती आँखें हसीं तबस्सुम दमकता चेहरा किताब जैसा | शाही शायरी
wo hansti aankhen hasin tabassum damakta chehra kitab jaisa

ग़ज़ल

वो हँसती आँखें हसीं तबस्सुम दमकता चेहरा किताब जैसा

प्रिया ताबीता

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वो हँसती आँखें हसीं तबस्सुम दमकता चेहरा किताब जैसा
दराज़ क़ामत है सर्व आसा है रंग खिलते गुलाब जैसा

वो धीमे लहजे के ज़ेर-ओ-बम में फुवार जैसी हसीन रिम-झिम
है गुफ़्तुगू में बहम तसलसुल रवाँ रवाँ सा चनाब जैसा

कुछ उस के आरिज़ की दिल-फ़रेबी कुछ उस के होंटों का रंग दिलकश
वो सर से पा है ग़ज़ल का लहजा नया नया सा शबाब जैसा

कभी वो तस्वीर बन के देखे कभी वो तहरीर बन के बोले
वो पल में गुम-सुम वो पल में हैराँ किसी मुसव्विर के ख़्वाब जैसा

वो मेरे जज़्बों की ख़ुश-नसीबी या उस की चाहत की इंतिहा है
कि उस की आँखों में अक्स मेरा निहाँ अयाँ सा हिजाब जैसा

फ़रिश्ता सूरत दुआ का साया वो रूप इंसाँ का धार आया
है उस से दूरी अज़ाब मुझ को है उस का मिलना सवाब जैसा

पलट के देखे तो वक़्त ठहरे वो चल पड़े तो ज़माना हैराँ
वो रश्क-ए-अम्बर वो माह-ए-कामिल वो कहकशाँ वो शहाब जैसा

कभी वो शेर-ओ-सुख़न का शैदा कभी वो तहक़ीक़ का दिवाना
वो मेरी ग़ज़लों का हुस्न-ए-मतला मिरे मक़ाले के बाब जैसा