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वो है आग वो पानी है | शाही शायरी
wo hai aag wo pani hai

ग़ज़ल

वो है आग वो पानी है

मोहसिन असरार

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वो है आग वो पानी है
सब की एक कहानी है

उन खंडरात के नीचे भी
जारी नक़्ल-ए-मकानी है

कोई मेरी उम्र बताए
बचपन है कि जवानी है

आईने हैं गर्द-आलूद
और ख़ित्ता बारानी है

घर का नक़्शा है तयार
अब ज़ंजीर बनानी है

हाथ हमारे ज़ख़्मी हैं
और चट्टान गिरानी है

कोई सपना भी देखो
वीरानी वीरानी है

मेरे घर का सन्नाटा
मेरी ही बे-ध्यानी है

हिज्र को हिज्र न कहना भी
'मोहसिन' बे-ईमानी है