EN اردو
वो एक शख़्स कि जिस से शिकायतें थीं बहुत | शाही शायरी
wo ek shaKHs ki jis se shikayaten thin bahut

ग़ज़ल

वो एक शख़्स कि जिस से शिकायतें थीं बहुत

नासिर ज़ैदी

;

वो एक शख़्स कि जिस से शिकायतें थीं बहुत
वही अज़ीज़ उसी से मोहब्बतें थीं बहुत

वो जब मिला तो दिलों में कोई तलब ही न थी
बिछड़ गया तो हमारी ज़रूरतें थीं बहुत

हर एक मोड़ पे हम टूटते बिखरते रहे
हमारी रूह में पिन्हाँ क़यामतें थीं बहुत

पहुँच गए सर-ए-मंज़िल तिरी तमन्ना में
अगरचे राह कठिन थी सऊबतें थीं बहुत

वो यूँ मिला है कि जैसे कभी मिला ही न था
हमारी ज़ात पे जिस की इनायतें थीं बहुत

हमें ख़ुद अपने ही यारों ने कर दिया रुस्वा
कि बात कुछ भी न थी और वज़ाहतें थीं बहुत

हमारे ब'अद हुआ उस गली में सन्नाटा
हमारे दम से ही 'नासिर' हिकायतें थीं बहुत