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वो दिल-नवाज़ है लेकिन नज़र-शनास नहीं | शाही शायरी
wo dil-nawaz hai lekin nazar-shanas nahin

ग़ज़ल

वो दिल-नवाज़ है लेकिन नज़र-शनास नहीं

नासिर काज़मी

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वो दिल-नवाज़ है लेकिन नज़र-शनास नहीं
मिरा इलाज मिरे चारा-गर के पास नहीं

तड़प रहे हैं ज़बाँ पर कई सवाल मगर
मिरे लिए कोई शायान-ए-इल्तिमास नहीं

तिरे जिलौ में भी दिल काँप काँप उठता है
मिरे मिज़ाज को आसूदगी भी रास नहीं

कभी कभी जो तिरे क़ुर्ब में गुज़ारे थे
अब उन दिनों का तसव्वुर भी मेरे पास नहीं

गुज़र रहे हैं अजब मरहलों से दीदा-ओ-दिल
सहर की आस तो है ज़िंदगी की आस नहीं

मुझे ये डर है तिरी आरज़ू न मिट जाए
बहुत दिनों से तबीअ'त मिरी उदास नहीं