EN اردو
वो बुत मुब्तला-तलब मेहर-तलब वफ़ा-तलब | शाही शायरी
wo but mubtala-talab mehr-talab wafa-talab

ग़ज़ल

वो बुत मुब्तला-तलब मेहर-तलब वफ़ा-तलब

सय्यद अाग़ा अली महर

;

वो बुत मुब्तला-तलब मेहर-तलब वफ़ा-तलब
ये दिल आश्ना-तलब जौर-तलब जफ़ा-तलब

याद नहीं उन्हें ज़रा तीरा-दिलों का ख़ूँ-बहा
हैं तिरी चश्म-ए-दस्त-ओ-पा सुर्मा-तलब हिना-तलब

बस्ता-ए-इंतिशार हैं तालिब-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार हैं
उस के सियाहकार हैं रंज-तलब बला-तलब

रहती है दिल में मुत्तसिल आतिश-ए-रंज मुस्तक़िल
रोज़-ए-अव्वल से है ये दिल ग़म-तलब आश्ना-तलब

रात-दिन उस का दाग़-ए-आह रखता है मेरे दिल से राह
'मेहर' हैं जैसे मेहर-ओ-माह नूर-तलब ज़िया-तलब