वो बुत मुब्तला-तलब मेहर-तलब वफ़ा-तलब
ये दिल आश्ना-तलब जौर-तलब जफ़ा-तलब
याद नहीं उन्हें ज़रा तीरा-दिलों का ख़ूँ-बहा
हैं तिरी चश्म-ए-दस्त-ओ-पा सुर्मा-तलब हिना-तलब
बस्ता-ए-इंतिशार हैं तालिब-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार हैं
उस के सियाहकार हैं रंज-तलब बला-तलब
रहती है दिल में मुत्तसिल आतिश-ए-रंज मुस्तक़िल
रोज़-ए-अव्वल से है ये दिल ग़म-तलब आश्ना-तलब
रात-दिन उस का दाग़-ए-आह रखता है मेरे दिल से राह
'मेहर' हैं जैसे मेहर-ओ-माह नूर-तलब ज़िया-तलब
ग़ज़ल
वो बुत मुब्तला-तलब मेहर-तलब वफ़ा-तलब
सय्यद अाग़ा अली महर