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वो भी मिलने नई पोशाक बदल कर आया | शाही शायरी
wo bhi milne nai poshak badal kar aaya

ग़ज़ल

वो भी मिलने नई पोशाक बदल कर आया

जमाल एहसानी

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वो भी मिलने नई पोशाक बदल कर आया
मैं जो कल पैरहन-ए-ख़ाक बदल कर आया

ऐ ज़मीं-ज़ाद तिरी रिफ़अतें छूने के लिए
तुझ तलक मैं कई अफ़्लाक बदल कर आया

उस को रास आई है ये बज़्म-ए-जहाँ जो भी यहाँ
अपना पैमाना-ए-इदराक बदल कर आया

इश्क़ में कोई तकल्लुफ़ की ज़रूरत तो नहीं
फिर वो क्यूँ दीदा-ए-नमनाक बदल कर आया

हम से कर बे-सर-ओ-सामानी-ए-हिजरत पे सवाल
उस से मत पूछ जो इम्लाक बदल कर आया

आँसुओं से न बदल पाया रुख़-ए-बाद 'जमाल'
पर मिज़ाज-ए-ख़स-ओ-ख़ाशाक बदल कर आया