वो भी गुमराह हो गया होगा
मेरा बद-ख़्वाह हो गया होगा
मेरे हक़ में जो बोल उट्ठा है
दर्द-आगाह हो गया होगा
सज्दा-ए-शौक़ जो अदा न हुआ
संग-ए-दरगाह हो गया होगा
हादसे की हमें ख़बर ही नहीं
ख़ैर नागाह हो गया होगा
वाक़िआ' आप तक नहीं पहुँचा
नज़्र-ए-अफ़्वाह हो गया होगा
सूरत-ए-हाल देख कर वो भी
तेरे हमराह हो गया होगा
वक़्त के साथ साथ उस का क़द
और कोताह हो गया होगा
इस बरस भी न आ सका 'फ़रताश'
वक़्फ़-ए-तंख़्वाह हो गया होगा
ग़ज़ल
वो भी गुमराह हो गया होगा
फ़रताश सय्यद