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वक़्त-ए-रुख़्सत चलते चलते कह गए | शाही शायरी
waqt-e-ruKHsat chalte chalte kah gae

ग़ज़ल

वक़्त-ए-रुख़्सत चलते चलते कह गए

नातिक़ लखनवी

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वक़्त-ए-रुख़्सत चलते चलते कह गए
अब जो अरमाँ रह गए सो रह गए

जल्द-बाज़ अरमाँ तेरे दीदार के
ख़ून हो कर आँसुओं में बह गए

उम्र भर सोचा किए समझे न हम
आँखों आँखों में वो क्या क्या कह गए

क्या छुपाता है मेरा हाल ऐ तबीब
कहने वाले मेरे मुँह पर कह गए

उस की मंज़िल तक न पहुँचा एक भी
सब मुसाफ़िर रास्ते में रह गए

पहले 'नातिक़' दिल जिगर में दर्द था
अब सरापा दर्द बन कर रह गए