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वैसे तू मेरे मकाँ तक तू चला आता है | शाही शायरी
waise tu mere makan tak tu chala aata hai

ग़ज़ल

वैसे तू मेरे मकाँ तक तू चला आता है

ज़ुबैर अली ताबिश

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वैसे तू मेरे मकाँ तक तू चला आता है
फिर अचानक से तिरे ज़ेहन में क्या आता है

आहें भरता हूँ कि पूछे कोई आहों का सबब
फिर तिरा ज़िक्र निकलता है मज़ा आता है

तेरे ख़त आज लतीफ़ों की तरह लगते हैं
ख़ूब हँसता हूँ जहाँ लफ़्ज-ए-वफ़ा आता है

जाते-जाते ये कहा उस ने चलो आता हूँ
अब यही देखना है जाता है या आता है

तुझ को वैसे तो ज़माने के हुनर आते हैं
प्यार आता है कभी तुझ को बता आता है