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वही वा'दा है वही आरज़ू वही अपनी उम्र-ए-तमाम है | शाही शायरी
wahi wada hai wahi aarzu wahi apni umr-e-tamam hai

ग़ज़ल

वही वा'दा है वही आरज़ू वही अपनी उम्र-ए-तमाम है

ग़ुलाम मौला क़लक़

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वही वा'दा है वही आरज़ू वही अपनी उम्र-ए-तमाम है
वही चश्म है वही राह है वही सुब्ह है वही शाम है

वही ख़स्ता-हाल ख़राब है वही ख़्वाब कुश्ता-ए-ख़्वाब है
वही ज़िंदगी को जवाब है न सलाम है न पयाम है

वही जोश नाला-ओ-आह में वही शो'ला जान-ए-तबाह में
वही बर्क़-ए-यास निगाह में जो ख़याल है सो वो ख़ाम है

वही ख़्वाब-ओ-ख़ुर की तलाश है वही जान-ओ-दिल में ख़राश है
वही रंज-ए-ग़ैर-ए-मआ'श है मुझे ज़िंदगी भी हराम है

वही हिज्र दुश्मन-ए-वस्ल है वही मर्ग-ओ-ज़ीस्त में फ़स्ल है
वही अपने शग़्ल से शग़्ल है वही अपने काम से काम है

वही शक़ जिगर न सियो सियो वही ज़ीस्त है न जियो जियो
वही ख़ून-ए-दिल न पियो पियो वही बादा है वही जाम है

वही शौक़-ए-राह है रहनुमा वही जल्वा-गाह है रुख़-कुशा
वही बज़्म-ए-नाज़ है जा-ब-जा वही हर क़दम पे मक़ाम है

वही नीम-जाँ दम-ए-वापसीं वही नाला-कश सुख़न-ए-हज़ीं
वही यास-ए-ज़ीस्त है दिल-नशीं कि ज़बाँ पे आप का नाम है

वही रंज है तो यूँ ही सही वो 'क़लक़' ही था कि यूँ ही निभी
मिरी आप को भी है बंदगी मिरा इश्क़ को भी सलाम है