वही साइल वही मसऊल वही हाजत-मंद
गर हो मक़रून-ए-इजाबत तो सवाल अच्छा है
है तिरी ख़ू-ए-करम तल्ख़-नवाई का इलाज
एवज़-ए-संग समर दे वो निहाल अच्छा है
जुमा-ए-आख़िर-ए-माह-ए-रमज़ान है अफ़ज़ल
यूँ तो जिस वक़्त में हो बज़ल-ओ-नवाल अच्छा है
हो गई मख़्मसा-ए-क़हत-ओ-गिरानी में कमी
शुक्र है साल-ए-गुज़िश्ता से ये साल अच्छा है

ग़ज़ल
वही साइल वही मसऊल वही हाजत-मंद
इस्माइल मेरठी