वही होता है जो महबूब को मंज़ूर होता है
मोहब्बत करने वाला हर तरह मजबूर होता है
जहाँ जाते हैं हम उस की गली से हो के जाते हैं
अगरचे रास्ता इस रास्ते से दूर होता है
नहीं रुकते घड़ी-भर तालिब-ए-दीदार के आँसू
ये ज़ालिम शौक़ गोया आँख का नासूर होता है
कोई मजनूँ की इज़्ज़त इश्क़ की सरकार में देखे
बड़ी ख़िदमत पे ऐसा आदमी मामूर होता है
हसीनों का तनज़्ज़ुल भी नहीं है शान से ख़ाली
बुढ़ापे में भी उन लोगों के मुँह पे नूर होता है
वो ऐसी ख़ंदा-पेशानी से हर मारूज़ा सुनते हैं
ये समझे अर्ज़ करने वाला अब मंज़ूर होता है
तुझे मशहूर होना हो तो आशिक़ की बुराई कर
बुराई से बहुत जल्द आदमी मशहूर होता है
हमारे घर वो आ कर थक गए हाँ क्यूँ न थक जाते
नया रस्ता जो हो नज़दीक भी तो दूर होता है
जो तुम वाबस्ता-ए-दामन को समझे दाग़-ए-बदनामी
तो अब क्या दूर कर सकते हो अब ये दूर होता है
बड़ा एहसान होगा मेरे दिल का ख़ून कर डालो
यही मजबूर करता है यही मजबूर होता है
मुझे तुम जानते हो अक़्ल से मा'ज़ूर हाँ बे-शक
मोहब्बत करने वाला अक़्ल से मा'ज़ूर होता है
हसीन हर एक हो सकता नहीं बे-शक 'सफ़ी' बे-शक
वही होता है जो अल्लाह को मंज़ूर होता है

ग़ज़ल
वही होता है जो महबूब को मंज़ूर होता है
सफ़ी औरंगाबादी