EN اردو
वफ़ा के हैं ख़्वान पर निवाले ज़े-आब अव्वल दोअम ब-आतिश | शाही शायरी
wafa ke hain KHwan par niwale ze-aab awwal doam ba-atish

ग़ज़ल

वफ़ा के हैं ख़्वान पर निवाले ज़े-आब अव्वल दोअम ब-आतिश

हसरत अज़ीमाबादी

;

वफ़ा के हैं ख़्वान पर निवाले ज़े-आब अव्वल दोअम ब-आतिश
भरे है साक़ी यहाँ प्याले ज़े-आब अव्वल दोअम ब-आतिश

चमन में जोश-ए-जुनूँ के हैं अश्क और दाग़-ए-दरूँ से अपने
करूँ शगुफ़्ता गुल और लाले ज़े-आब अव्वल दोअम ब-आतिश

हमारे अश्क और आह की मौजें बाँध देती हैं सब जो दूरी
बने हैं माह-ए-फ़लक पे हाले ज़े-आब अव्वल दोअम ब-आतिश

जहाँ के सब गर्म ओ सर्द देखे न ज़ौक़ है उन में कुछ न लज़्ज़त
दो रोज़ छाती यहाँ पकाले ज़े-आब अव्वल दोअम ब-आतिश

दो हुक्म हैं शाह-ए-इश्क़ के इन में एक गलना है एक जलना
हैं दफ़्तर-ए-दर्द में क़बाले ज़े-आब अव्वल दोअम ब-आतिश

न खोल वाइज़ किताब-ए-दानिश कि आतिश-ए-इश्क़ ओ आब-ए-मय से
धोऊँ जलाऊँ तिरे रिसाले ज़े-आब अव्वल दोअम ब-आतिश

सितम है आफ़त है महर या कीं बला ये इश्क़-ए-सतीज़ा-गर की
दिलों के ख़ाने उजाड़ डाले ज़े-आब अव्वल दोअम ब-आतिश

पड़े हैं हम ख़ून-ए-दिल में ग़लताँ जिगर है दाग़-ए-जफ़ा से सोज़ाँ
कोई है अपने तईं सँभाले ज़े-आब अव्वल ज़े-आब ब-आतिश

विसाल की जुस्तुजू में 'हसरत' चला न ज़ारी न ज़ोर का कुछ
बहुत से याँ हम ने ढब निकाले ज़े-आब अव्वल ज़े-आब ब-आतिश