वफ़ा के बाब में इल्ज़ाम-ए-आशिक़ी न लिया
कि तेरी बात की और तेरा नाम भी न लिया
ख़ुशा वो लोग कि महरूम-ए-इल्तिफ़ात रहे
तिरे करम को ब-अंदाज़-ए-सादगी न लिया
तुम्हारे बाद कई हाथ दिल की सम्त बढ़े
हज़ार शुक्र गरेबाँ को हम ने सी न लिया
तमाम मस्ती ओ तिश्ना-लबी के हंगामे
किसी ने संग उठाया किसी ने मीना लिया
'फ़राज़' ज़ुल्म है इतनी ख़ुद-ए'तिमादी भी
कि रात भी थी अँधेरी चराग़ भी न लिया

ग़ज़ल
वफ़ा के बाब में इल्ज़ाम-ए-आशिक़ी न लिया
अहमद फ़राज़