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वफ़ा-ए-वादा नहीं वादा-ए-दिगर भी नहीं | शाही शायरी
wafa-e-wada nahin wada-e-digar bhi nahin

ग़ज़ल

वफ़ा-ए-वादा नहीं वादा-ए-दिगर भी नहीं

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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वफ़ा-ए-वादा नहीं वादा-ए-दिगर भी नहीं
वो मुझ से रूठे तो थे लेकिन इस क़दर भी नहीं

बरस रही है हरीम-ए-हवस में दौलत-ए-हुस्न
गदा-ए-इश्क़ के कासे में इक नज़र भी नहीं

न जाने किस लिए उम्मीद-वार बैठा हूँ
इक ऐसी राह पे जो तेरी रहगुज़र भी नहीं

निगाह-ए-शौक़ सर-ए-बज़्म बे-हिजाब न हो
वो बे-ख़बर ही सही इतने बे-ख़बर भी नहीं

ये अहद-ए-तर्क-ए-मोहब्बत है किस लिए आख़िर
सुकून-ए-क़ल्ब उधर भी नहीं इधर भी नहीं