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वाक़ई कोई अगर मौजूद है | शाही शायरी
waqai koi agar maujud hai

ग़ज़ल

वाक़ई कोई अगर मौजूद है

जमाल एहसानी

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वाक़ई कोई अगर मौजूद है
फिर तो ये दुख उम्र-भर मौजूद है

बीच का रस्ता नहीं बाक़ी कोई
या ख़ुदा है या बशर मौजूद है

उस को पाने की तवक़्क़ो' है बहुत
जब तलक ये चश्म-ए-तर मौजूद है

उस के मिलने ही से पहले जाने क्यूँ
उस को खो देने का डर मौजूद है

कोई मंज़िल कैसे तन्हा सर करें
हम-सफ़र में हम-सफ़र मौजूद है

आदत-ए-ख़ाना-ख़राबी है 'जमाल'
वर्ना अच्छा-ख़ासा घर मौजूद है