EN اردو
उसी की तरह मुझे सारा ज़माना चाहे | शाही शायरी
usi ki tarah mujhe sara zamana chahe

ग़ज़ल

उसी की तरह मुझे सारा ज़माना चाहे

कुमार विश्वास

;

उसी की तरह मुझे सारा ज़माना चाहे
वो मिरा होने से ज़्यादा मुझे पाना चाहे

मेरी पलकों से फिसल जाता है चेहरा तेरा
ये मुसाफ़िर तो कोई और ठिकाना चाहे

एक बनफूल था इस शहर में वो भी न रहा
कोई अब किस के लिए लौट के आना चाहे

ज़िंदगी हसरतों के साज़ पे सहमा-सहमा
वो तराना है जिसे दिल नहीं गाना चाहे