उसे मना कर ग़ुरूर उस का बढ़ा न देना
वो सामने आए भी तो उस को सदा न देना
ख़ुलूस को जो ख़ुशामदों में शुमार कर लें
तुम ऐसे लोगों को तोहफ़तन भी वफ़ा न देना
वो जिस की ठोकर में हो सँभलने का दर्स शामिल
तुम ऐसे पत्थर को रास्ते से हटा न देना
सज़ा गुनाहों की देना उस को ज़रूर लेकिन
वो आदमी है तुम उस की अज़्मत घटा न देना
जहाँ रिफ़ाक़त हो फ़ित्ना-पर्दाज़ मौलवी की
बहिश्त ऐसी किसी को मेरे ख़ुदा न देना
'क़तील' मुझ को यही सिखाया मिरे नबी ने
कि फ़त्ह पा कर भी दुश्मनों को सज़ा न देना
ग़ज़ल
उसे मना कर ग़ुरूर उस का बढ़ा न देना
क़तील शिफ़ाई