उस से फिर क्या गिला करे कोई
जो कहे सुन के क्या करे कोई
हम भी क्या क्या कहें ख़ुदा जाने
गर हमारी सुना करे कोई
हाए वो बातें प्यार की शब-ए-वस्ल
भूले क्या याद क्या करे कोई
लोग क्यूँ पूछते हैं हाल मिरा
ज़िक्र किस बात का करे कोई
दर्द-ए-दिल का इलाज हो किस से
यूँ मसीहा हुआ करे कोई
बेवफ़ा गर कहूँ तो कहते हैं
क्या हर इक से वफ़ा करे कोई
जाए गर जाँ तो सौ हैं तदबीरें
जाए गर दिल तो क्या करे कोई
कोई अपनी ख़ता तो हो मालूम
उज़्र किस बात का करे कोई
दिल का कुछ हाल ही नहीं खुलता
गर मरज़ हो दवा करे कोई
कभी मैं ने भी कुछ कहा तुम से
न सुनो, कुछ कहा करे कोई
तुम से बे-रहम पर न दिल आए
और आए तो क्या करे कोई
सैकड़ों बातें कह के कहते हैं
फिर हमें क्यूँ ख़फ़ा करे कोई
कोई कब तक न दे जवाब तुम्हें
चुपका कब तक सुना करे कोई
शिकवा उस बुत का हर किसी से 'निज़ाम'
उस से कह दे ख़ुदा करे कोई
ग़ज़ल
उस से फिर क्या गिला करे कोई
निज़ाम रामपुरी