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उस से गिले शिकायतें शिकवे भी छोड़ दो | शाही शायरी
us se gile shikayaten shikwe bhi chhoD do

ग़ज़ल

उस से गिले शिकायतें शिकवे भी छोड़ दो

शकील शम्सी

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उस से गिले शिकायतें शिकवे भी छोड़ दो
दर उस का छुट गया तो दरीचे भी छोड़ दो

कैसा है वो कहाँ है बना किस का हम-सफ़र
बेहतर है कुछ सवाल अधूरे भी छोड़ दो

इक बेवफ़ा का नाम लिखोगे कहाँ तलक
औराक़ अपने माज़ी के सादे भी छोड़ दो

जीने के वास्ते न सहारे करो तलाश
जब डूब ही रहे हो तो तिनके भी छोड़ दो

शायद नए मकान में उन का न दिल लगे
घर छोड़ने लगो तो परिंदे भी छोड़ दो

जिस ने तुम्हें चराग़ों से महरूम कर दिया
उस की गली के चाँद सितारे भी छोड़ दो

दरिया से दूर रहना ही बेहतर है अब 'शकील'
धारे से कट गए तो किनारे भी छोड़ दो