उस ने मेरी राह न देखी और वो रिश्ता तोड़ लिया
जिस रिश्ते की ख़ातिर मुझ से दुनिया ने मुँह मोड़ लिया
बड़ी बड़ी ख़ुशियों को हाँ नज़दीक से जा कर देखा तो
मैं ने राह के चलते-फिरते दुख से नाता जोड़ लिया
मैं कितने रंगों में ढलता कब तक ख़ुद से लड़ पाता
जीवन एक सफ़र था जिस ने रोज़ नया इक मोड़ लिया
ऐसे शख़्स को मीर बनाया जो बस ख़्वाब दिखाता था
बस्ती के लोगों ने अपना-आप मुक़द्दर फोड़ लिया
मैं तो भोला-भाला 'वसीम' और वो फ़नकार सियासत का
उस के जब घटने की बारी आई मुझ को जोड़ लिया
ग़ज़ल
उस ने मेरी राह न देखी और वो रिश्ता तोड़ लिया
वसीम बरेलवी