उस ने मज़ाक़ समझा मिरा दिल दुखा गया
फिर मोम-बत्तियों को हमेशा बुझा गया
निकला था ख़ुद को ढूँडने उस रेगज़ार में
मायूस हो के रास्ता वापस चला गया
इक इक गली में ढूँड रही थी हवा मुझे
लहरों के साथ साथ मिरा नक़्श-ए-पा गया
बिस्तर पे लेटे लेटे मिरी आँख लग गई
ये कौन मेरे कमरे की बत्ती बुझा गया
सता रहा था लान में सब काम छोड़ कर
झोंका हवा का आया और हँस कर चला गया
ग़ज़ल
उस ने मज़ाक़ समझा मिरा दिल दुखा गया
जयंत परमार