उस ने हम को गुमान में रक्खा
और फिर कम ही ध्यान में रक्खा
क्या क़यामत-नुमू थी वो जिस ने
हश्र उस की उठान में रक्खा
जोशिश-ए-ख़ूँ ने अपने फ़न का हिसाब
एक चुप इक चटान में रक्खा
लम्हे लम्हे की अपनी थी इक शान
तू ने ही एक शान में रक्खा
हम ने पैहम क़ुबूल-ओ-रद कर के
उस को एक इम्तिहान में रक्खा
तुम तो उस याद की अमान में हो
उस को किस की अमान में रक्खा
अपना रिश्ता ज़मीं से ही रक्खो
कुछ नहीं आसमान में रक्खा
ग़ज़ल
उस ने हम को गुमान में रक्खा
जौन एलिया