EN اردو
उस ने हम को गुमान में रक्खा | शाही शायरी
usne hum ko guman mein rakkha

ग़ज़ल

उस ने हम को गुमान में रक्खा

जौन एलिया

;

उस ने हम को गुमान में रक्खा
और फिर कम ही ध्यान में रक्खा

क्या क़यामत-नुमू थी वो जिस ने
हश्र उस की उठान में रक्खा

जोशिश-ए-ख़ूँ ने अपने फ़न का हिसाब
एक चुप इक चटान में रक्खा

लम्हे लम्हे की अपनी थी इक शान
तू ने ही एक शान में रक्खा

हम ने पैहम क़ुबूल-ओ-रद कर के
उस को एक इम्तिहान में रक्खा

तुम तो उस याद की अमान में हो
उस को किस की अमान में रक्खा

अपना रिश्ता ज़मीं से ही रक्खो
कुछ नहीं आसमान में रक्खा