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उस की ख़्वाहिश पे नए शे'र बराबर कहना | शाही शायरी
uski KHwahish pe nae sher barabar kahna

ग़ज़ल

उस की ख़्वाहिश पे नए शे'र बराबर कहना

ज़िया ज़मीर

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उस की ख़्वाहिश पे नए शे'र बराबर कहना
और फिर सुन के उन्हें उस का मुकर्रर कहना

ख़ुश्क आँखें लिए हँसता हुआ देखो जिस को
उस को सहरा नहीं कह देना समुंदर कहना

क्या अजब है कि हो बेटे की फ़क़त हार पे हार
और माँ का उसे हर बार सिकंदर कहना

ये तो हम हैं बड़े दिल वाले जो कह देते हैं
वर्ना आसान नहीं अपने से बेहतर कहना

पहले हम 'मीर' के क़दमों को ज़रा चूम आएँ
बा'द में यारो हमें खुल के सुख़नवर कहना

इश्क़ के मारों को कहना नहीं देखो कुछ भी
और अगर कहना ही चाहो तो क़लंदर कहना