उस के करम से है न तुम्हारी नज़र से है
मौसम दिलों का दर्द के रौशन शजर से है
जिस से मिरे वजूद के पहलू अयाँ हुए
शायद मिरा मोआ'मला उस के हुनर से है
हाइल हुआ न कोई तअ'ल्लुक़ की राह में
दाइम तमाम सिलसिला बिन्त-ए-सहर से है
आया न वो हरम में इमामत के वास्ते
कुछ रब्त ही अजीब उसे अपने घर से है
अपनी गली में नस्ब है वो संग-ए-बे-नवा
कहते हैं गरचे वास्ता उस को सफ़र से है
उस के सिवा न दिल की हिकायत कोई पढ़े
मंसूब मेरी दास्ताँ इक दीदा-वर से है
महसूस किस तरह हो मुझे धूप का अज़ाब
'अलमास' कारोबार मिरा बाद-ए-तर से है

ग़ज़ल
उस के करम से है न तुम्हारी नज़र से है
हमीद अलमास