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उस के होंटों पे बद-दुआ' भी नहीं | शाही शायरी
uske honTon pe bad-dua bhi nahin

ग़ज़ल

उस के होंटों पे बद-दुआ' भी नहीं

फ़ारूक़ बख़्शी

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उस के होंटों पे बद-दुआ' भी नहीं
अब मिरे वास्ते सज़ा भी नहीं

लफ़्ज़ ख़ामोशियों का पर्दा हैं
बोलता है वो बोलता भी नहीं

मैं ने फूलों को खिलते देखा है
उस ने होंटों से कुछ कहा भी नहीं

एक मुद्दत से साथ हूँ अपने
और मैं ख़ुद को जानता भी नहीं

हादसे आम हो गए इतने
मुड़ के अब कोई देखता भी नहीं

जाने क्यूँ दिल की आँख रोती है
मेरे अंदर कोई मरा भी नहीं