उस का मिज़ाज पूछो जो हर वक़्त पास है
उस की बला से दिल जो हमारा उदास है
पोशाक से बदन की तजल्ली है आश्कार
फ़ानूस-ए-शम-ए-तूर तुम्हारा लिबास है
दिल तोड़ कर वो नश्शे में कहते हैं नाज़ से
किस काम का रहा है ये टूटा गिलास है
फ़रमाइए मिज़ाज-ए-मुबारक है किस तरह
कुछ ख़ैर तो है किस लिए चेहरा उदास है
मुद्दत के बाद आज तो तन्हा मिले हुज़ूर
उस पर भी पूछते हैं कि क्या इल्तिमास है
तलवार की है क़द्र-शनासी के दम के साथ
'जौहर' को जानता है जो जौहर-शनास है
ग़ज़ल
उस का मिज़ाज पूछो जो हर वक़्त पास है
लाला माधव राम जौहर

