उस का अपना ही करिश्मा है फ़ुसूँ है यूँ है
यूँ तो कहने को सभी कहते हैं यूँ है यूँ है
जैसे कोई दर-ए-दिल पर हो सितादा कब से
एक साया न दरूँ है न बरूँ है यूँ है
तुम ने देखी ही नहीं दश्त-ए-वफ़ा की तस्वीर
नोक-ए-हर-ख़ार पे इक क़तरा-ए-ख़ूँ है यूँ है
तुम मोहब्बत में कहाँ सूद-ओ-ज़ियाँ ले आए
इश्क़ का नाम ख़िरद है न जुनूँ है यूँ है
अब तुम आए हो मिरी जान तमाशा करने
अब तो दरिया में तलातुम न सुकूँ है यूँ है
नासेहा तुझ को ख़बर क्या कि मोहब्बत क्या है
रोज़ आ जाता है समझाता है यूँ है यूँ है
शाइ'री ताज़ा ज़मानों की है मे'मार 'फ़राज़'
ये भी इक सिलसिला-ए-कुन-फ़यकूँ है यूँ है
ग़ज़ल
उस का अपना ही करिश्मा है फ़ुसूँ है यूँ है
अहमद फ़राज़