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उस बुत को नहीं है डर ख़ुदा से | शाही शायरी
us but ko nahin hai Dar KHuda se

ग़ज़ल

उस बुत को नहीं है डर ख़ुदा से

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

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उस बुत को नहीं है डर ख़ुदा से
बिगड़ी बंदे से गर ख़ुदा से

गो ख़ल्क़ भी जाने हाल मेरा
पोशीदा नहीं मगर ख़ुदा से

है हम से तो आह आह करना
देना इस को असर ख़ुदा से

हम ने उसे अपना सूद जाना
पहुँचा भी अगर ज़रर ख़ुदा से

देखा है मैं जब से वो बुत-ए-शोख़
फिर गई है मिरी नज़र ख़ुदा से

बाज़ीचे में है उधर वो मशग़ूल
और बन रही है इधर ख़ुदा से

कुछ ख़ूब नहीं ये ख़ुद-नुमाई
हाँ ऐ बुत-ए-शोख़ डर ख़ुदा से

है बैर ख़ुदाई और ख़ुदी में
इतनी भी ख़ुदी न कर ख़ुदा से

ये सारे ख़ुदा-शनास हैं लेक
देता नहीं कोई ख़बर ख़ुदा से

ऐ 'मुसहफ़ी' कुछ कमी नहीं वाँ
जो चाहे सो माँग पर ख़ुदा से