उन की सूरत नज़र नहीं आती
शब-ए-ग़म की सहर नहीं आती
यूँ तो गर्दिश में है नज़र उन की
हम जिधर हैं उधर नहीं आती
क़त्ल बीमार को करो आ कर
चारा-साज़ी अगर नहीं आती
आने वाली तो थी मगर कब तक
मौत की कुछ ख़बर नहीं आती
जम्अ' हैं मय-कदे में मतवाले
क्यूँ घटा झूम कर नहीं आती
कौन सी वो बला है हिज्र की शब
जो मिरी जान पर नहीं आती
जिस घड़ी हो बशर को ग़म से नजात
वो घड़ी उम्र भर नहीं आती
आज वो यूँ लड़े हैं 'शंकर' से
सुल्ह होती नज़र नहीं आती

ग़ज़ल
उन की सूरत नज़र नहीं आती
शंकर लाल शंकर