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उन की ख़ैर-ओ-ख़बर नहीं मिलती | शाही शायरी
unki KHair-o-KHabar nahin milti

ग़ज़ल

उन की ख़ैर-ओ-ख़बर नहीं मिलती

कुमार विश्वास

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उन की ख़ैर-ओ-ख़बर नहीं मिलती
हम को ही ख़ास कर नहीं मिलती

शाएरी को नज़र नहीं मिलती
मुझ को तू ही अगर नहीं मिलती

रूह में दिल में जिस्म में दुनिया
ढूँढता हूँ मगर नहीं मिलती

लोग कहते हैं रूह बिकती है
मैं जिधर हूँ उधर नहीं मिलती