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उन के जल्वे निगाहों में ढलते रहे | शाही शायरी
un ke jalwe nigahon mein Dhalte rahe

ग़ज़ल

उन के जल्वे निगाहों में ढलते रहे

शाज़िया नाज़

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उन के जल्वे निगाहों में ढलते रहे
हौसले दिल ही दिल में मचलते रहे

दोस्तों ने तो काँटे बिछाए बहुत
मुस्कुराते हुए हम भी चलते रहे

कोई फूलों से दामन को भर ले गया
हम खड़े बाग़ में हाथ मलते रहे

इस की भरपूर अल्हड़ जवानी पे हम
मुस्कुराते सिसकते मचलते रहे

रास्ते मंज़िलें दूर होती गईं
मेरी फ़ितरत में चलना था चलते रहे

अश्क बहते रहे दिल धड़कता रहा
रात-भर करवटें हम बदलते रहे

उम्र यूँ ही गुज़रती रही 'शाज़िया'
चोट खाते रहे और सँभलते रहे