EN اردو
उन के जाते ही ये वहशत का असर देखा किए | शाही शायरी
un ke jate hi ye wahshat ka asar dekha kiye

ग़ज़ल

उन के जाते ही ये वहशत का असर देखा किए

क़मर जलालवी

;

उन के जाते ही ये वहशत का असर देखा किए
सू-ए-दर देखा तो पहरों सू-ए-दर देखा किए

दिल को वो क्या देखते सोज़-ए-जिगर देखा किए
लग रही थी आग जिस घर में वो घर देखा किए

उन की महफ़िल में उन्हें सब रात भर देखा किए
एक हम ही थे कि इक इक की नज़र देखा किए

तुम सिरहाने से घड़ी भर के लिए मुँह फेर लो
दम न निकलेगा मिरी सूरत अगर देखा किए

मैं कुछ इस हालत से उन के सामने पहुँचा कि वो
गो मिरी सूरत से नफ़रत थी मगर देखा किए

फ़ाएदा क्या ऐसी शिरकत से अदू की बज़्म में
तुम उधर देखा किए और हम उधर देखा किए

शाम से ये थी तिरे बीमार की हालत कि लोग
रात भर उठ उठ के आसार-ए-सहर देखा किए

बस ही क्या था बे-ज़बाँ कहते भी क्या सय्याद से
यास की नज़रों से मुड़ कर अपना घर देखा किए

मौत आ कर सामने से ले गई बीमार को
देखिए चारागरों को चारा-गर देखा किए

रात भर तड़पा किया है दर्द-ए-फ़ुर्क़त से 'क़मर'
पूछ लो तारों से तारे रात भर देखा किए