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उन का वादा बदल गया है | शाही शायरी
un ka wada badal gaya hai

ग़ज़ल

उन का वादा बदल गया है

शमीम करहानी

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उन का वादा बदल गया है
फ़र्दा आँसू में ढल गया है

तन्हाई से कुछ हुई हैं बातें
तन्हाई से दिल बहल गया है

मामूल-ए-नज़र वही है लेकिन
मफ़हूम-ए-नज़र बदल गया है

रुक जा ऐ कारवान-ए-इमरोज़
माज़ी मेरा कुचल गया है

साहिल पे निगाह आँख वालो
अंधा तूफ़ाँ मचल गया है

साग़र में शराब है कि यारो
अँगारा कोई पिघल गया है

किस शोख़ निगाह का तसव्वुर
रुख़्सारों पे रंग मल गया है

उट्ठेगा ज़रूर इक न इक दिन
फ़ित्ना फ़िलहाल टल गया है

साक़ी तिरे मय-कदे में आ कर
इंसान ज़रा सँभल गया है

देखा ऐ इंक़िलाब तुझ को
तस्वीर का रुख़ बदल गया है

मग़रिब के उफ़ुक़ पे है तबस्सुम
सूरज मशरिक़ में ढल गया है

वो आए हैं याद शाम-ए-हसरत
या कोई चराग़ जल गया है

मंज़िल पे 'शमीम' को न पाया
शायद आगे निकल गया है