उम्र गुज़री है इल्तिजा करते
क़िस्सा-ए-ग़म लब-आश्ना करते
जीने वाले तिरे बग़ैर ऐ दोस्त
मर न जाते तो और क्या करते
हाए वो क़हर-ए-सादगी-आमेज़
काश हम फिर उन्हें ख़फ़ा करते
रंग होता कुछ और दुनिया का
शैख़ मेरा अगर कहा करते
आप करते जो एहतिराम-ए-बुताँ
बुत-कदे ख़ुद ख़ुदा ख़ुदा करते
रिंद होते जो बा-शुऊर 'अनवर'
क्या बताऊँ तुम्हें वो क्या करते
ग़ज़ल
उम्र गुज़री है इल्तिजा करते
अनवर साबरी