EN اردو
उम्र भर बहते हैं ग़म के तुंद-रौ धारों के साथ | शाही शायरी
umr bhar bahte hain gham ke tund-rau dhaaron ke sath

ग़ज़ल

उम्र भर बहते हैं ग़म के तुंद-रौ धारों के साथ

हज़ीं लुधियानवी

;

उम्र भर बहते हैं ग़म के तुंद-रौ धारों के साथ
जाने क्यूँ होते हैं इतने ज़ुल्म फ़नकारों के साथ

अब्र की सूरत बरसते हैं बुलंद-ओ-पस्त पर
हम नहीं आँसू बहाते लग के दीवारों के साथ

ज़ेहन के पर्दे पे रक़्सिंदा हैं प्यासी सूरतें
हम नशे में कैसे बह सकते हैं मय-ख़्वारों के साथ

रोज़ ख़ून-ए-आरज़ू होता है फिर भी प्यार है
हम को ऐ हस्ती तिरे दिलचस्प बाज़ारों के साथ

हम-सफ़र है ख़ाक-ओ-बाद‌‌-ओ-आतिश-ओ-आब ऐ 'हज़ीं'
काश निभ जाए हमारी अब इन्ही चारों के साथ