उमंगों में वही जोश-ए-तमन्ना-ज़ाद बाक़ी है 
अभी दिल में ख़ुदा रक्खे किसी की याद बाक़ी है 
सर-ए-मंज़िल फ़रेब-ए-रहनुमा का तोड़ मुश्किल था 
ग़नीमत है कि शौक़-ए-मरहला-ईजाद बाक़ी है 
हँसी आती है तेरे इस ग़ुरूर-ए-दाम-दारी पर 
कोई फंदा भी साबित आज ऐ सय्याद बाक़ी है 
सहर ने आ के चेहरा वक़्त का धोया तो क्या धोया 
फ़ज़ाओं पर ग़ुबार-ए-ख़ातिर-ए-नाशाद बाक़ी है 
तबाही घेरने वाली थी आख़िर किन सफ़ीनों को 
तह-ए-गिर्दाब शोर-ए-हर-चे बादा-बाद बाक़ी है 
अभी से बंध गई हिचकी चमन-अफ़रोज़ कलियों की 
अभी तो दास्तान-ए-निगहत-ए-बरबाद बाक़ी है 
ज़बान-ए-वक़्त कल से इक नया अफ़्साना छेड़ेगी 
बहुत थोड़ी सी 'याक़ूब' आज की रूदाद बाक़ी है
        ग़ज़ल
उमंगों में वही जोश-ए-तमन्ना-ज़ाद बाक़ी है
याक़ूब उस्मानी

