EN اردو
उजले माथे पे नाम लिख रक्खें | शाही शायरी
ujle mathe pe nam likh rakkhen

ग़ज़ल

उजले माथे पे नाम लिख रक्खें

फ़ारूक़ मुज़्तर

;

उजले माथे पे नाम लिख रक्खें
ख़्वाहिशों का मक़ाम लिख रक्खें

फिर हवस को है हसरत-ए-परवाज़
आप दाना-ओ-दाम लिख रक्खें

वर्ना हम इस को भूल जाएँगे
सब्ज़ हर्फ़ों में नाम लिख रक्खें

जाने किस सम्त कल हवा ले जाए
लम्हा-ए-शाद-काम लिख रक्खें

अपने होने का कुछ यक़ीं कर लें
रेत पर नक़्श-ओ-नाम लिख रक्खें

शब को ठिठुरेंगे सब दर-ओ-दीवार
धूप कुछ अपने नाम लिख रक्खें

ज़र्दियाँ ओढ़ने लगा सूरज
नामा-ए-ख़ौफ़-ए-शाम लिख रक्खें

पीले पीले बदन हुआ मौसम
पीला पीला तमाम लिख रक्खें

आने वाले उदास नस्लों के
सिलसिला-वार नाम लिख रक्खें