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उजड़ के घर से सर-ए-राह आ के बैठे हैं | शाही शायरी
ujaD ke ghar se sar-e-rah aa ke baiThe hain

ग़ज़ल

उजड़ के घर से सर-ए-राह आ के बैठे हैं

वारिस किरमानी

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उजड़ के घर से सर-ए-राह आ के बैठे हैं
हम अपनी ज़िद में सभी कुछ गँवा के बैठे हैं

कहाँ तक अपनी ही परछाइयों से भागेंगे
ये लोग जो तिरी महफ़िल में आ के बैठे हैं

अब आह-ओ-ज़ारी-ए-ग़म-ख़्वार का फ़रेब खुला
ये मेहरबाँ भी वहीं दिल लगा के बैठे हैं

अज़ाब-ए-हश्र का क्या ज़िक्र हम से ऐ वाइ'ज़
हम इस बला को यहीं आज़मा के बैठे हैं