उधर वो बे-मुरव्वत बेवफ़ा बे-रहम क़ातिल है
इधर बे-सब्र-ओ-बे-तसकीन-ओ-बे-ताक़त मिरा दिल है
उधर सय्याद चश्म-ओ-दाम-ए-ज़ुल्फ़-ओ-नावक-ए-मिज़्गाँ
इधर पहलू में दिल इक सैद-ए-लाग़र नीम-बिस्मिल है
उधर उस को तो मेरे नाम से भी नंग है हर-दम
इधर सीने में दिल मुश्ताक़ है आशिक़ है माइल है
उधर वो ख़ुद-परस्त अय्यार है मग़रूर है ख़ुद-बींं
इधर मेरा दिल अज़-ख़ुद-रफ़्ता है शैदाई ग़ाफ़िल है
उधर हर रोज़ का उस को ख़िलाफ़-ए-वा'दा है आसाँ
इधर शब-ता-सहर-गह इंतिज़ारी सख़्त मुश्किल है
उधर ख़ुश सैर-ए-दरिया से है वो ना-आश्ना ज़ालिम
इधर हम ग़र्क़-ए-बहर-ए-ग़म हैं और नापैद साहिल है
उधर बर्क़-ए-निगह है सब्र के ख़िर्मन की आतिश-ज़न
इधर किश्त-ए-उम्मीद-ओ-यास अब तक सैर-ए-हासिल है
उधर शाने को उस के ज़ुल्फ़-ओ-काकुल ने चढ़ाया सर
इधर दिल पर बला-ए-आसमाँ यक-दस्त नाज़िल है
उधर बाक़ी हवस है बे-हिसाब उस को जफ़ाओं की
इधर लिखिए वफ़ाओं की तो कुछ अपना ही फ़ाज़िल है
उधर वो आइने में अक्स-ए-रू अपने का है माइल
इधर हर शय में वो है जल्वा-गर-ए-शक्ल-ओ-शमाइल है
उधर है इख़्तिलात अग़्यार से उस यार-ए-जानी का
इधर दिल ज़िक्र उस के का 'मुहिब' दिन रात शामिल है
ग़ज़ल
उधर वो बे-मुरव्वत बेवफ़ा बे-रहम क़ातिल है
वलीउल्लाह मुहिब