EN اردو
उदासी छा गई चेहरे पे शम-ए-महफ़िल के | शाही शायरी
udasi chha gai chehre pe sham-e-mahfil ke

ग़ज़ल

उदासी छा गई चेहरे पे शम-ए-महफ़िल के

यगाना चंगेज़ी

;

उदासी छा गई चेहरे पे शम-ए-महफ़िल के
नसीम-ए-सुब्ह से शोले भड़क उठे दिल के

शरीक-ए-हाल नहीं है कोई तो क्या परवा
दलील-ए-राह-ए-मोहब्बत हैं वलवले दिल के

अजब नहीं कि बपा हो यहीं से फ़ित्ना-ए-हश्र
ज़माने भर में हैं सारे फ़साद इसी दिल के

न संग-ए-मील न नक़्श-ए-क़दम न बाँग-ए-जरस
भटक न जाएँ मुसाफ़िर अदम की मंज़िल के

ख़ुशी के मारे ज़मीं पर क़दम नहीं रखते
जब आए क़ाफ़िले वाले क़रीब मंज़िल के

नज़ारा-ए-रुख़-ए-लैला मुबारक ऐ मजनूँ
निगाह-ए-शौक़ ने पर्दे उठाए महमिल के

मुशाहिदे को इक आईना-ए-जमाल दिया
कमाल-ए-इश्क़ ने जौहर दिखा दिए दिल के

ज़बान-ए-'यास' से अफ़्साना-ए-सहर सुनिए
वो रोना शम्अ का परवानों से गले मिल के